मेरे अकी :-
क्यूँ रहती हो बहकी -बहकी
जैसे आग नई -नई हो देहकी
चाहे ये मन एक सखी
कह सकूँ जिसे वो सब
जो खुद ही से न कह सकी
नैनो को मेरे न भाए ख़ुशी
ढूंढे तुम्हे हर ओर कहीं
वो हम दम मेरा वो मेरी सच्ची ख़ुशी
नाम नहीं ले सकूँ
इसी कारण कहती उन्हें अकी
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