रोज़ सुबह -सुबह
दौड़ते -दौड़ते
कुछ सोचते -सोचते
पहुँच ही जाते थे
कभी-कभी डांट भी खाते थे
फिर भी सुधरना नहीं चाहते थे
हाँ क्लास में ध्यान जरुर लगाते थे
जैसे बिन शरारत के बचपन बेकार है
वैसे ही समझे बिना रटना बेकार है
हम जानते थे ,
तभी तो पढाई में मन अपना लगाते थे
करने को पढाई तो हम सब ही करते हैं
पर कुछ ही हैं जो बुराइयों से जीवन भर लड़ते हैं