मासूमियत ऐसी की..............
वो तन्हा ही बैठी थी
उसे होश ही कहाँ था
वो सोच में पड़ी थी
आँखों के सामने ये कैसी घटा घनघोर थी
जो देखे उसे वो भी खो जाए
इतनी सादगी को कोई कहाँ से लाये
मासूमियत ऐसी की हुस्न लजा जाये
पूछे बिना भी ना रहा जाए
कौन है वो जिसकी आस में बठी हो टकटकी लगाए