होठों की नमी
सासें थमी
आँखें रुकी
वहीँ दूर कहीं
कुछ तो है जो है सही
दिन कब कैसे गुजर गया
मुझे होश कहाँ
तू ही तू नज़र आती है देखू जहां
कुछ अलग सा है एहसास
हुआ खुद ही से जैसे अनजान
हो जाए जो खता
समझा देना हमें की हम है नादान