उन रास्तों से जा के पूछों
पत्थर वहाँ कम नहीं थे
हम उस वक़्त हम नहीं थे
पर कुछ कहते नहीं थे
हम सहते भी नहीं थे
धीरे धीरे ही सही
वक़्त बदलने लगा
हर पल मेरा संवरने लगा
बातें उनकी करते करते
वक़्त यूँही गुजर जाता है
सच्चा हो साथी तो
जीने का ढंग ही
जैसे बदल जाता है