फूलों से आँगन अपना सजायेंगे
मौसम बदलते रहे
हम मिलते बिछदते रहे
हर पल एक छुभन सी सहते रहे
तुमसे मिलने को तरसते रहे
और खुद ही से कहते रहे
ये रुत भी निकल जाएगी
रात और कितनी गेहराएगी
वो दिन भी आएगा
जब तेरी-मेरी सांसें एक हो जायेंगी
जिस ओर जायेंगे तू हमसे टकराएगी