क्या सोचते हो
जो करते हो
सूत समेत भरते हो
फिर भी गुनाह करके
गंगा की और टकते हो
रहमत होगी उसकी यकीन रखते हो
तो फिर क्यूँ अपनों से बैर रखते हो
क्या मुझे हक नहीं जीने का
शौक नहीं होता है
कुछ को अपने अश्कों को पीने का
तो कुछ को गम जीने का
वो तो हालात ही बिगड़ जाते हैं
तभी तो कुछ लोग वक़्त के आगे
खुद को तन्हा ही पाते है
होता जो विश्वास का है सहारा
तो मिल ही जाता है जिंदगी को किनारा