Saturday, March 2, 2013

हरे हरे खेत 
सोने सी रेत 
यादों को कुछ रखते हैं सहेज 
हमें नहीं है उनसे परहेज 
पर वक़्त किसी के रोके रुकता नहीं 
हिंदुस्तानी का सर यूँहीं झुकता नहीं 
रेशे रेशे से बनती है डोर 
एक सच्ची साधारण सी कोशिश
 भी ले जाती है उस खुदा की ही  ओर 
हम उस इतिहास को लिख रहे हैं 
जिसका जिक्र हम बरसो से सुन रहे थे 
स्वस्थ ,सुंदर देश होगा  अपना 
भगत सिंहजी  की आँखों ने देखा था 
कुछ ऐसा ही  सपना 
विवेकानन्दजी की बातों पे ज़रा गौर करो 
शक न खुद पे करना चाहे कुछ  और करो 

sad shayari

sad shayari मेरी आदतों में तू शुमार है मेरी चाहतो की तू एक किताब है तुझे लेके कहीं दूर जाने की कशमकश में हूँ क्योंकि तू मेरी हमदम मेरी...