हरे हरे खेत
सोने सी रेत
यादों को कुछ रखते हैं सहेज
हमें नहीं है उनसे परहेज
पर वक़्त किसी के रोके रुकता नहीं
हिंदुस्तानी का सर यूँहीं झुकता नहीं
रेशे रेशे से बनती है डोर
एक सच्ची साधारण सी कोशिश
भी ले जाती है उस खुदा की ही ओर
हम उस इतिहास को लिख रहे हैं
जिसका जिक्र हम बरसो से सुन रहे थे
स्वस्थ ,सुंदर देश होगा अपना
भगत सिंहजी की आँखों ने देखा था
कुछ ऐसा ही सपना
विवेकानन्दजी की बातों पे ज़रा गौर करो
शक न खुद पे करना चाहे कुछ और करो